संदर्भ : नोबेल शांति पुरस्कार महात्मा गाँधी को क्यों नहीं मिला? , बराक ओबामा को क्यों मिला ?
पुरस्कार कौन प्राप्त करेगा? कौन प्राप्त नहीं करेगा ? इस बात को जानने के लिए लोगो की कद, गुण , हैसियत जानना बहुत जरुरी है. पुरस्कार पाने की पहली स्थिति है - जो लोग पुरस्कार के योग्य नहीं होते है उसे पुरस्कार नहीं मिलता है. पुरस्कार पाने की दूसरी स्थिति है - जो पुरस्कार के योग्य होते है उसे ही पुरस्कार मिलता है. पुरस्कार पाने की तीसरी स्थिति है किसी व्यक्ति का कद, गुण हैसियत पुरस्कार से भी उची होती है. इस कारन उस महान व्यक्ति को पुरस्कार नहीं मिलता है. पुरस्कार पाने की चौथी स्थिति है - कुछ लोग पुरस्कार के योग्य नहीं होते है फिर भी उन्हें पुरस्कार मिल जाता है. पिछले दिनों बराक ओबामा को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया . अरब जगत का कहना है की ओबामा अफगानिस्तान में सेना भेज रहे है. फिर उसे शांति नोबेल पुरस्कार दिया जाना अनुचित है. इधर भारतीयों का कहना है महात्मा गाँधी को नोबेल शांति पुरस्कार क्यों नहीं मिला ? मैं महात्मा गाँधी का कद, गुण, हैसियत को इतना उचा मानता हूँ की नोबेल शांति पुरस्कार उसकी हैसियत के सामने छोटा है. यानि महात्मा गाँधी तीसरी स्थिति में है. बराक ओबामा दूसरी स्थिति में है या चौथी स्थिति में है. कृपया यह आप बताएं.
गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009
शनिवार, 10 अक्तूबर 2009
माओवाद का फैलाव
माओवाद का फैलाव कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होती है. एसी बात बिलकुल नहीं है की किसी भी परिस्थिति में माओवाद का फैलाव हो जायेगा. यदि एसा होता तो पूरा विश्व पर माओवाद का प्रभाव होता. लोग माओवाद से डरे सहमे रहते, जैसा की वर्तमान में झारखण्ड , बिहार, वेस्ट बंगाल आदि राज्य है. माओवाद का फैलाव पाशान्कालीन भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक स्थितियों में बहुत तेजी से होती है. एसा इसलिए होता है क्योंकि पाशान्कालीन लोगो की विचारधारा तथा माओवाद की विचारधारा बहुत ज्यादा मिलती जुलती है. जैसे की पाशानकाल में हिंसा करना. उस समय के लोग हिंसावाद के समर्थक थे. अपना कोई भी कार्य हिंसा के सहारे करते थे. जैसा की वर्तमान में माओवादी हिंसा के सहारे ही कोई काम करते है. भोगोलिक स्थिति से तात्पर्य जैसे पेड़-पोधो तथा जंगली क्षेत्र, में माओवाद बहुत तेजी से फैलता है.पासांकालिन लोग जंगल में रहते थे और हिंसा के सहारे जंगलो में अपना जीविकोपार्जन करते थे. वर्तमान में झारखण्ड के माओवादी भी उसी राह में है. दूसरी बात माओवाद का फैलाव पासान्कालीन सामाजिक स्थिति में तेजी से होती है. पासानकाल काल के लोग सामाजिक नहीं थे. उनका कोई मित्र, बंधू, सखा, दोस्त नहीं होता था. सभी उनके शत्रु थे. अहिंसा का नामोनिशान नहीं था. ठीक इसी प्रकार वर्तमान में माओवाद का कोई मित्र आदि नहीं है. किसी को भी छः इंच छोटा कर देते है. तीसरी बात पासान्कालीन आर्थिक स्थिति में माओवाद का फैलाव तेजी से होती है. पासानकाल में कृषि के अविष्कार से लोगो के आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया, लेकिन जिस क्षेत्र में कृषि का अविष्कार नहीं हुया था उस क्षेत्र के लोग अपना पेट हिंशा करके भरते थे. कृषि में रोजगार उत्पन्न होने से, हिंसावाद का पतन हुआ. जैसे-जैसे सभ्यता विकास करती गई लोग पाषाण काल की मुख्य विशेषता हिंसा का परित्याग करते गए. कहने का तात्पर्य है जो क्षेत्र या लोग विकास किये वे हिंसावाद (माओवाद) का त्याग कर दिए. जैसे की वर्तमान में चीन ने विकास किया तो वह भी माओवाद की बाहर कर दिया.
स्पष्ट है समाजिक , आर्थिक रूप से पिछडे ख्सेत्र में माओवाद का फैलाव हो रहा है. भारत सरकार को झारखण्ड, वेस्ट बंगाल आदि राज्यों के पिछडे क्षेत्र में शिक्षा व रोजगार की वृद्धि करनी चाहिए. ताकि माओवाद का फैलाव न हो.
स्पष्ट है समाजिक , आर्थिक रूप से पिछडे ख्सेत्र में माओवाद का फैलाव हो रहा है. भारत सरकार को झारखण्ड, वेस्ट बंगाल आदि राज्यों के पिछडे क्षेत्र में शिक्षा व रोजगार की वृद्धि करनी चाहिए. ताकि माओवाद का फैलाव न हो.
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