मंहगाई ने लोगो की थालियाँ से व्यंजन गायब कर दिए है. दाल तो किसी प्राचीन व्यंजन की तरह आदर्स्निया हो चुकी है. भले ही मंहगाई ने गरीबो के थाली से विविन्न व्यंजन छीन लिए लेकिन खिचड़ी ही ऐसा व्यंजन बची है जो मंहगाई को पटखनी दे रखी है. यह बात अलग है की बिना दाल की ही खिचड़ी पेट में उतर रही है. एक खिचड़ी ही ऐसा व्यंजन है जो इतनी प्रतियोगिता के बावजूद भी अस्तित्व बचा पाई है. घ्ठ्था, मडुवा की रोटी, दल का पिथ्था आदि कई व्यंजन तो भारत का पुरातत्व भोजन बन चुकी है. खिचड़ी ही है जिसने फास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड, china फ़ूड को पटखनी रखी है.
खिचड़ी से हमारे समाज को बहुत ज्यादा लगाव है. बिन बुलाये बारह मेहमान आये ओ खिचड़ी ही परोसी जाती है. यदि चावल घट जाती है तो मक्का का चावल मिलकर खिचड़ी बना दी जाती है. गरीबो के बिच चावल-हल्दी की खिचड़ी काफी लोकप्रिय है. आज भी कई घरो में garah-गोचर उतरने के लिए खिचड़ी ही दिया जाता है. गरीबो का सहारा खिचड़ी है.
मंहगाई ने बचपन की याद दिला दी . गांव में माँ ने मुझे दो तरह की खिचड़ी खाने को दी थी. एक दाल की खिचड़ी और दूसरी हल्दी-चावल की खिचड़ी. यसे ही मंहगाई उस समय छाई थी. मैंने माँ से कहा था जब सिर्फ हल्दी-चावल से खिदी बन जाती है तो दाल की स्य जरूरत है. फिर माँ ने बताया की दाल की खिचड़ी पौष्टिक होती है. सरीर का विकास करती है. हल्दी-चावल की खिचड़ी तो सिर्फ जीवन को बुढ़ापे तक धकेलने के लिए है.
आज भी खिचड़ी बेचलर छात्र का सबसे स्वादिस्ट व्यंजन है. मैं जब रांची पंहुचा तो सबसे पहला दिन खिचड़ी ही पकाया था. आज भी सप्ताह में तिन-चार दिन बना लेता हूँ . मित्र दाल तसला में बनाते है तो सीझता ही नहीं है. सब्जी में कभी नमक ज्यादा तो कभी हल्दी ज्यादा और चावल तो खीर में परिवर्तित हो जाती है. अधिकतर बेचलर छात्र समय बचने के लिए खिचड़ी , आचार, चोखा खाते है.
खिचड़ी का sthan हमारे अर्थव्यवस्था में बहुत अधिक है. खिचड़ी से स्टुडेंट, गरीब जनता और सरकार भी फल-फुल रही है. सरकार ने मिड-डे मिल चालू किया तो किसी और व्यंजन के सरन में नहीं गई बल्कि खिचड़ी के ही सरन में गई. यदि भारत में इतनी बड़ी आबादी जीवित है तो खिचड़ी के सहारे ही.
फिलवक्त खिचड़ी याद आने मुख्य कारण झारखण्ड में खिचड़ी शासन बनने से है. पिछले बार हल्दी-चावल के खिचड़ी शासन बनी थी. इस बार हल्दी-चावल की खिचड़ी बनी है की दाल के यह तो झारखण्ड के सेहत से ही पता चल पायेगा. गरीब जनता ने फिर से खिचड़ी परोसी है. जिन्हें कुछ बनाना नहीं आता है wah खिचड़ी jarur banaa lete है.
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
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