रविवार, 8 नवंबर 2009

जमीनी लोगो की दौड़

जल, जंगल, जमीं से जुड़े जमीनी लोगो के समक्ष अपनी जमीनी क्षेत्र का विकास करने का कोई भी दबाव नहीं होता है. जमीनी लोग कभी भी यह नहीं चाहते है की उनके जमीनी क्षेत्र का विकास हो. यदि उनके जमीनी क्षेत्र का विकास होता है जमीनी व्यक्ति को अपनी ही जमीं पहचान में नहीं आती है. अपनी इस समस्या के कारण जमीनी लोग अपने क्षेत्र का विकाश नहीं चाहते है.
                  झारखण्ड के नेता जमीनी होते है. जमीनी लोग रुढ़वादी होते है.  साथ ही साथ रुढ़वादी लोग हिंसक होते है. अपने को जमीनी कहने वाले व्यक्ति दुसरे को जमीनी बनने देना नहीं चाहते है. इस निति के आधार पर ही झारखण्ड के जमीनी नेता झारखण्ड की जनता को जमीनी बनने नहीं देना चाहते है. जब झारखण्ड की जनता झारखण्ड में रह कर काम करेंगे तो जनता जमीनी हो जायेंगे. इससे झारखण्ड के जमीनी नेता का जमीनी पकड़ अधिक नहीं हो पायेगी. इसलिए झारखण्ड के नेता जनता को पलायन कर रही है.
               महारास्ट्र के राज ठाकरे स्वं को जमीनी कहते है. उनकी हिंसक मानसिकता आज पुरे भारत में विख्यात है. पाकिस्तान के आतंकवादी स्वं को जमीनी कहते है. ये आतंकवादी अपनी  जमीनी पकड़ कमजोर पड़ता  देख अपनी  ही जमीं में ज्यादा के जयादा विस्फोट करने लगे. इन उदाहरणों से आप समझ सकते है की जमीनी लोग अपनी जमीनी पकड़ बनने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है.
              झारखण्ड में विधानसभा चुनाव होने वाला है. इस चुनाव में स्वं को जमीनी कहने वाली बहुत सारे  नेता है. ये नेता स्वं को जमीनी कह कह कर जनता को गुमराह कर रहे है. झारखण्ड की जनता इस बार एसे नेता को वोट दे, जो स्वं की जमीनी पकड़ नहीं बढाता हो बल्कि जनता की जमीनी पकड़ झारखण्ड में बढ़ने के लिए बेताब हो.

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