ढोने की मज़बूरी होती है तभी तो लोग ढोते है. जैसे की मध्य प्रदेश की गरीब, दलित जनता आज भी अमीर लोगो के मल ढोने को मजबूर है. पिछले दिनों यह समाचार झारखण्ड (रांची) के एक अखबार में छपी. एक पाठक ने टिप्पणी की 'ठीके कहे हम भी इ सरकार को ढोने को मजबूर है.
चीनी और चुन्नी दो अलग-अलग चीज है. झारखण्ड के अलावा अन्य राज्यों की जनता के पास चीनी और चुन्नी दोनों को ढोने को मिलते है. चीनी जैसी मिठास वाले नेता चुनते है तो उनके क्षेत्र का विकाश होता है. चुन्नी वाला को ढोते है तो उनका विकाश नहीं होता है.
लेकिन झारखण्ड की जनता को न तो चीनी नसीब है और न तो चुन्नी नसीब है. झारखण्ड को जनता मज़बूरी में ये सरकार को ढो रही है. जैसे की मनमोहन सिंह ए. राजा को ढो रहे है. ए. राजा ६० हजार करोड़ के घोटाले में पकरे गए, फिर भी उन्हें ढोया जा रहा है. कंही सरकार न गिर जाये सो मनमोहन सिंह उसे ढोने को मजबूर है. मधु कोडा कह दिए - "सब पैसो का खेल है नहीं तो हम एक दिन के लिए भी मुख्यमंत्री पद के लिए नहीं ढोए जाते. " इस पर झारखण्ड की जनता ने कहा था , समझ रहे हम मधु कोडा जी आफ्हू बोरा-बोरा ढो कर सोनिया गाँधी को पैसा ढो कर पहुचा रहे है. कांग्रेस ने मधु कोडा, बंधू तिर्की, एनोश एक्का आदि को ढोया था . कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए इन्हें ढोना तो मज़बूरी ही थी. ढोने के दरम्यान ही दिल्ली से एक कांग्रेसी नेता रांची आये अजय माकन. उन्होंने कह दिया कांग्रेस अब कोडा को नहीं ढोएगी. अल्टीमेटम दे दिए. झारखण्ड की जनता चीनी ढोए या नहीं ढोए लेकिन अजय माकन का नाम लेते ही झारखण्ड की जनता के मुह में चीनी जैसी मिठास जरुर आ जाती है. कांग्रेस, झामुमो, राजद की मदद से मधु कोडा मुख्यमंत्री बनने के बाद, मधु कोडा ने २००० करोड़ रूपये कमाए. इतना पैसा कमाए की पैसा ढोने की मज़बूरी मधु कोडा को आन पड़ी. इस प्रकार मधु कोडा भी ढोने को मजबूर हो गए.
इस बार झारखण्ड की जनता क्या ढोएगी ?
मंगलवार, 3 नवंबर 2009
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अब कोई पहले ही सब वसूल कर ले जो दस बीस साल मे वसूलना चाहिए तो पार्टी उन्हे अब काहे ढोए......
जवाब देंहटाएंआपकी पीड़ा अधिकतर की पीड़ा है..
जवाब देंहटाएंइससे अधिक विड़म्बना क्या हो सकती है कि आज भी मनुष्य मैला ढ़ोने को मजबूर है...